कौन अपना है किसी से क्यों गिला रखिये,
खुद तलक पाबन्द अपना फैसला रखिये.
लोग सुनकर मुस्करायेंगे, खिसक लेंगे,
कैद सीने में ग़मों का ज़लज़ला रखिये.
आप दिल से काम लेते हैं, कयामत है,
ज़ख्मो-जिल्लत झेलने का हौसला रखिये.
टूटना फिर बिखर जाना नियति है इसकी,
किसलिए जारी वफ़ा का सिलसिला रखिये.
यूं न मिलिए प्यास मिलने की फ़ना हो जाय,
दोस्त हर रिश्ते में थोड़ा फासला रखिये.
Friday, November 6, 2009
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कैद सीने में ग़मों का ज़लज़ला रखिये...
ReplyDeletekya baat hai!